भारतीय परंपरा में स्कूल का नाम विद्यालय है न कि शिक्षालय, ऐसा क्यों ?

सर्वप्रथम स्वामी विवेकानंद के निम्नलिखित कथन को सहजता से समझने के प्रयास कीजिए

“Expansion is Life, Contraction is death, Love is Life, Hatred is death.”

    – By Vivekananda

शिक्षा वह है जो व्यक्ति के बुद्धि का विकास कर उसे बुद्धिमान व होसियार बनाता है। अपने बुद्धि के बल पर ही इंसानों ने धरती को तथाकथित खुबसूरत बनाया है। सुई से लेकर अंतरिक्ष यान तक का निर्माण हुआ। जीवन आरामदायक बन गया इत्यादि।मगर इस यात्रा में कुछ बहुत महत्वपूर्ण चीज पीछे छूट गया वह है:- व्यक्ति के स्वयं का निर्माण, उसके चरित्र का निर्माण।

शिक्षा शिक्षित करता है लेकिन विद्या चरित्र का निर्माण करता है, हृदय का विस्तार करता है। शिक्षा बुद्धिमान ( Intellectual) बनाता है वहीं विद्या विवेकवान (Wise- wisdom) बनाता है। एक विवेकी व्यक्ति परिवार में, समाज में, राष्ट्र में, प्रकृति में अपनी भूमिका को, अपने कर्तव्यों को भली-भांति समझते हुए उसी अनुकूल कर्मरत रहता है। विवेकी व्यक्ति युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध की बात करता है। वह धनबल की नहीं बल्कि आत्मबल की बात करता है। शायद इन्हीं सब कारणों से स्कूल को शिक्षालय नहीं बल्कि विद्यालय कहा गया क्योंकि जो ज्ञान व्यवहार में परिलक्षित हो तो वहीं विद्या है। शिक्षकों को आचार्य कहा जाता था क्योंकि ज्ञान उसके आचरण में झलकता था। अतः भारतीय परंपरा में शिक्षकों/आचार्यों (चाणक्य से कलाम तक)का स्थान उच्च कोटि का रहा है। वर्तमान में शिक्षकों के समक्ष यह चुनौती है कि हम सामाजिक अपेक्षाओं को किस हद तक पूर्ण कर पाते हैं ?

नव वर्ष में खुश रहें तथा खुशबू और खुशियां बिखेरते रहें।

शुभकामनाएं 🙏💐

शिव कुमार साहु

टी जी टी सामाजिक विज्ञान।

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