गणतंत्र मे शासन और शासक का भेद मिट जाना चाहिये : धर्मवीर

गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर औपचारिक झंडोत्तोलन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा आज ज़रूरत है गणतंत्र के निहितार्थ एवं इस संवैधानिक व्यवस्था के मूल भाव को समझा जाय। हमारे पूर्वजों के बड़े ही त्याग- तपस्या से हमें ये स्वर्णिम क्षण प्राप्त हुए है जिसका शायद हमारे नौजवानों को भान नहीं? संभवतः यही कारण प्रतीत होता है कि वर्तमान में युवा एक मज़बूत राष्ट्र निर्माण के प्रति उतने संवेदनशील एवं सजग नहीं? अज्ञानतावश, हमारे युवा अतिभौतिकवादी और स्वकेंद्रित हो रहे है जो उनके स्वयं के लिए घातक है। ऐसे ही नहीं हमारे पूर्वज भारतीय जनमानसों ने एक अनूठी पहल करते हुए समाज के संचालन का नेतृत्व एक चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में सौंपा। वैशाली एवं लिच्छवि गणराज्य इसी पहल का परिणाम था। बाद में विश्व के अन्य भूभागों के समाजों ने इसका अनुकरण किया। आज ज़रूरत है इसके सही स्वरूप को समझने की।
गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ वंशानुगत शासन की समाप्ति तथा उसके स्थान पर सर्वसम्मति से चुने हुए शासन व्यवस्था कि स्थापना है। अतः गणतंत्र में शासन एवं शासक का भेद मिट जाना चाहिये। जो महज औपचारिकता बन कर रह गई है । गणों के मौलिक अधिकार को सुरक्षित , संरक्षित एवं सुचारू रूप से चलाने हेतु संविधान का निर्माण किया गया जिसके लागू होने के उपलक्ष्य में हम गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाते है लेकिन ये उत्सव तब और उत्सवमय हो जाएगा जब हमारे जनता जनार्दन अधिकार पाने के क्रम में कर्तव्य का पालन ईमानदारी पूर्वक करेगा।
सैद्धांतिक रूप से संविधान सर्वोच्य है और एक लोकतांत्रिक एवं लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना में इसकी एक अहम भूमिका है। लेकिन व्यवहार में संविधान की सफलता अथवा विफलता सरकार और समाज के जागृति एवं सहयोग पर निर्भर करता है। इसलिए आज जनता से विशेषकर युवाओं से आवाहन करना चाहूँगा कि सरकार को सचेत करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करने का संकल्प ले। क्योंकि हमारे श्रद्धेय गुरुदेवजी कहा करते थे कि मात्र नारा देश भक्ति नहीं, यह एक जीवनशैली है जिसे भारत के युवा को अंगीकार करना होगा तभी भारत फिर से एक महान देश एवं विश्वगुरु रूप में स्थापित हो सकेगा।

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